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Shubhank Agnihotri

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  • क्या बाकई चूक गई मोदी सरकारक्या बाकई चूक गई मोदी सरकार

    क्या बाकई चूक गई मोदी सरकार

    22 अप्रैल को पहलगाम की बैसरन घाटी में हुए आतंकी हमले से चार दिन पहले पाक आर्मी चीफ असीम मुनीर ने कहा था कि कश्मीर हमारी सांस की नली है लेकिन इस घटना ने वास्तव में कश्मीर के लोगों की आर्थिक श्वासनली काट दी। अरसे बाद घाटी में हुए इतने बड़े आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। निर्दोष पयर्टकों का धर्म पूछकर आतंकियों ने उन्हें बर्बरता से मौत के घाट उतार दिया। अनुच्छेद 370 हटने के बाद घाटी में अमन-चैन कायम हो रहा था लेकिन पाकिस्तान के हुक्मरानों को यह शांति , तसल्ली रास नहीं आई। पूरा देश इस हमले को लेकर आक्रोशित हुआ, लोगों ने पीड़ितों के सर्मथन में प्रदर्शन किया, आंदोलन किए। कश्मीर में पहली बार छोटे स्तर पर ही सही लोग पीड़ितों के दुख में शरीक हुए... एकजुटता दिखाने के लिए प्रदर्शन किया। हमले को कश्मीरियत पर हमला बताया। आतंकियों के लिए कड़ी सजा की मांग की। हमले की भयावहता इस बात से लगाई जा सकती है कि पीएम मोदी तत्काल सऊदी अरब का दौरा छोड़ भारत के लिए रवाना हो गए। दिल्ली एयरपोर्ट पर उन्होंने ही विदेश मंत्री, विदेश सचिव और एनएसए के साथ आपात बैठक की। यह उसी दृढ़ता का परिचायक था जो पुलवामा हमले के 12 दिन बाद बालाकोट एयर स्ट्राइक कर मोदी सरकार ने दिखाया था। इसके बाद पीएम मोदी ने तीनों सेनाओं को आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई के लिए खुली छूट दी। उन्होंने कहा कि आतंकवाद को करारा जवाब देना हमारा राष्ट्रीय संकल्प है। पीएम मोदी ने बिहार के मधुबनी में एक जनसभा में कहा कि हमले में शामिल आतंकियों और उनके साजिशकर्ताओं को उनकी कल्पना से परे सजा दी जाएगी। उन्होंने इसे भारत की आस्था पर हमला करार दिया। इस दौरान सरकार के साथ पूरा विपक्ष मजबूती के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहा और सरकार का आंतक के खिलाफ लड़ाई में हर मोर्चे पर साथ देने का वादा किया। यह हमारे विशाल लोकतंत्र की सच्ची और अनूठी खूबी है। देश पर जब-जब संकट के बादल छाये सभी राजनीतिक पार्टियों ने दलगत राजनीति से ऊपर उठ राष्ट्रीय एकता का परिचय दिया। पहलगाम हमले ने निश्चित तौर पर देश को विचलित कर दिया था। सब इसका प्रतिशोध चाहते थे। भारत ने भी जवाबी हमला किया लेकिन पाकिस्तान के नागरिकों या रक्षा ढांचे को नहीं, बल्कि आतंकवादी स्थलों को निशाना बनाया। इससे यह तो साफ हो गया कि हमारा मकसद पाकिस्तान को संदेश देना था न कि युद्ध भड़काना लेकिन जब पाकिस्तान ने मिसाइलों, ड्रोन से जवाबी कार्रवाई की तो लगा कि हम एक फुल-स्केल युद्ध की ओर बढ़ रहे हैं। हालांकि शुक्र है कि संघर्ष विराम हो गया। 6 और 7 मई की दरम्यानी रात भारतीय सेना ने जो कर दिखाया वह दुनिया के सामने है. भारतीय सेना के शीर्ष अधिकारियों ने दुनिया को सबूतों के साथ पाक की हकीकत दिखा दी और उसके झूठ को बेपर्दा कर दिया। साथ ही आज सुबह पंजाब स्थित आदमपुर एयरबेस पर पहुंचकर पीएम मोदी ने भारतीय वायुसेना के जवानों से मुलाकात कर पाक को एक और जख्म दे दिया। क्योंकि पाकिस्तानी हुकूमत अपनी जनता को यह बताते नहीं थक रही थी कि उसकी सेना ने भारतीय वायुसेना के इस बेस को तबाह कर दिया। भारतीय सेना ने ऑपरेशन सिंदूर चलाकर पाकिस्तान को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाया। सैटेलाइट तस्वीरों में इस बात की पुष्टि भी हुई। हालांकि वह पाक है कि उसे सरेयाफ्ता झूठ ही पसंद है। उसके हुक्मरान इस डिस्प्यूट को अपनी जीत की तरह सेलिब्रेट कर रहे हैं, जगह जगह रैलियां निकाली जा रही हैं। मगर सच्चाई तो कुछ और है... पाक सरकार अपनी अवाम को झूठ परोस कर सत्ता की बिरयानी खाने में मस्त हैं. सच तो यह है कि पाकिस्तान के कोरे दावों का कोई औचित्य नहीं वह एक फेल्ड स्टेट है जो दया और कृपा के अस्तित्व पर निर्भर है. उसकी हालत क्या है वह किसी से छिपी नहीं है. इस दौरान कुछ ऐसे सवाल जरूर हैं जो अभी अनुत्तरित हैं। उन्हें भी जानना अनिवार्य है। देश का एक बड़ा तबका कह रहा है कि भारत को इस संघर्ष में बढ़त थी तब हिंदुस्तान ने सीजफायर का समझौता क्यों कर लिया? वह भी अमेरिका के कहने पर? दूसरा फुल फ्लेज्ड वॉर से क्या हासिल हो जाता? क्या हमें पीओके मिल जाता? अंतरराष्ट्रीय समुदाय भारत के इस हमले को मान्यता देता? क्या हमें सोशल मीडिया वॉर प्रेमियों की बात माननी थी और जंग लड़नी थी? यह वे प्रश्न हैं जिनके उत्तर हमें देर सबेर मिल ही जाएंगे। लेकिन सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि अब 1971 का समय नहीं है। हम दुनिया की चौथी सबसे बड़ी और सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था हैं। उस समय, भारत की प्रति व्यक्ति आय 118 डॉलर थी जीडीपी 65 अरब डॉलर की थी और बामुश्किल 1 फीसदी की दर से विकास हो रहा था। तब पाक को हराना एक उपलब्धि के तौर पर देखा गया था लेकिन तब की परिस्थितियां और थीं तब दोनों देश परमाणु शक्ति से संपन्न नहीं थे। परंतु अब भारत में प्रति व्यक्ति आय 2,500 डॉलर से अधिक है और जीडीपी 4.1 ट्रिलियन डॉलर की है। हमारी इंडस्ट्री 6 से 8 फीसदी वार्षिक दर से बढ़ रही है। यह दुनिया में सबसे तेज है। अमेरिकी टैरिफ वॉर और सरकार की ईज ऑफ डूइंग बिजनेस नीति के तहत दुनियाभर की दिग्गज कंपनियां भारत में उत्पाद बनाने पर विचार कर रही हैं जिसका सीधा फायदा भारत को यहां के लोगों को होगा... क्या कोई देश जंग करके इस अवसर को गंवाना चाहेगा? जवाब है बिलकुल नही..। वहीं, दूसरी ओर पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था 379.31 बिलियन अमेरिकी डॉलर की है जो विश्व में 43 वें नंबर पर है और भारत से दस गुना छोटी है साथ ही भारत की प्रति व्यक्ति आय पाकिस्तान से लगभग 70 फीसदी अधिक है। पाकिस्तान का बाहरी कर्ज 128 बिलियन डॉलर है जो जीडीपी का 35 फीसदी से अधिक है। पाक की एक बड़ी आबादी उच्च गरीबी दर का सामना कर रही है, वह बुनियादी सुविधाओं तक के लिए संघर्ष कर रही है। पहलगाम हमले के बाद उसके कराची स्टॉक एक्सचेंज में 7,000 अंकों की गिरावट हुई जिसके बाद निवेशकों ने बड़ी मात्रा में अपनी पूंजी निकाल ली। इस बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी इस पूरे मामले में अपनी टांग अड़ाई। उन्होंने दावा किया कि उनकी वजह से दोनों न्यूक कंट्रीज ने सीजफायर का समझौता किया। उन्होंने इसके पीछे बिजनेस का हवाला देते हुए व्यापार न करने की धमकी दी। उन्होंने यह भी दावा किया कि हजार सालों से दोनों मुल्कों के बीच चल रहे कश्मीर विवाद को वह सुलझाने में मदद करेंगे। भारतीय विदेश मंत्रालय ने इन दावों को खारिज कर दिया और कहा कि वह कश्मीर विवाद केवल द्विपक्षीय सिद्धांत के अंतर्गत ही निपटाएगा। कश्मीर समाधान के लिए तीसरे पक्ष का दखल स्वीकार्य नहीं है। इस मुद्दे को भारत-पाकिस्तान आपस में सुलझाएंगे। यह बात विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कही। उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान को पीओके खाली करना होगा। हालांकि, इस दौरान कुछ ऐसे प्रश्न अब भी हैं जो शेष हैं। केंद्र सरकार को चाहिए कि वह इन सवालों का बगैर लाग-लपेट के स्पष्ट जवाब दे ताकि लोगों का सरकार पर भरोसा बना रहे। केंद्र में पीएम मोदी के सत्ता संभालने के बाद देश का एक बड़ा वर्ग उन्हें एक ऐसे नेता के रूप में देखता है जो कठिन और निर्णायक फैसलों के लिए जाने जाते हैं। सरकार ने इस पूरे विवाद को हल करने में जो सहूलियत और तत्परता दिखाई उसकी मिसाल दी जानी चाहिए फिर भी कुछ गलतियां हुई जिन्हें बारीकी से समझने और उन पर अमल करने की जरूरत है ताकि ऐसी स्थिति फिर न बने। वह तो भला हो पीएम मोदी का जो उन्होंने सोमवार को राष्ट्र के नाम संबोधन में पाक को चेतावनी देते हुए कह दिया कि भविष्य में कोई भी आंतकी हमला एक्ट ऑफ वॉर माना जाएगा और दुनिया को भी इशारों में बता दिया कि पाक से बातचीत केवल आतंक पर होगी, पीओके पर होगी। इस दौरान भी उन्होंने भारत की उस विरासत को संभाले रखा जिसमें कभी भी आक्रामक होने की परंपरा नहीं रही। सैन्य संघर्ष के बाद राष्ट्र को संबोधित करते हुए मोदी ने शांति को सर्वोपरि रखा, यह उनकी राजनीतिक परिपक्वता और भारत के सहज शांतिवाद के स्वरूपों को दर्शाता है। भारत ने हजारों साल पहले शांति को अपना सभ्यतागत मूल्य बनाया था जिसे हालिया इतिहास में हमारे संविधान में शामिल किया गया है, जो अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा पर जोर देता है। युद्ध भारत में राज्य की नीति का कभी साधन नहीं रहा है, जैसा कि इजराइल या रूस में है। स्वामी विवेकानंद ने कहा था की हम न केवल सार्वभौमिक सहिष्णुता में विश्वास करते हैं, बल्कि हम सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं। ऐसी ही एक बात स्वर्गीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कही थी कि भारत का उदय किसी आशंका का कारण नहीं है बल्कि शांति भारत के डीएनए का हिस्सा है। यह तब और भी महत्वपूर्ण हो जाती है जब उसे खुद की रक्षा करनी हो। इस बीच भारतीय कूटनीति शायद उतने प्रभावी ढंग से काम नहीं कर सकी जितनी उम्मीद थी। चूंकि मामला कश्मीर में आतंकी हमले से जुड़ा था लेकिन इसे मीडिया कवरेज कश्मीर के अंतराष्ट्रीयकरण के रूप में मिली। भारत की आवाज दबती हुई दिखाई दी और रही बची कसर ट्रंप की एंट्री ने कर दी। इस दौरान भारत के शीर्ष नेतृत्व की ओर से कोई बयान न आना अंतराष्ट्रीय स्तर पर भारत के बढ़ते कद लिए एक चिंता का विषय जरूर है लेकिन हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि भारत गांधी, विवेकानंद,चाणक्य और छत्रपति शिवाजी महाराज जैसे वीरों का देश है जो अपना काम बखूबी जानता है। #IndiaPakistanTensions #pmmodinews #OperationSindoor #Trump @highlight

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