डेमोक्रेसी समिट : वैश्विक भू राजनीति में भारत की भूमिका

संपूर्ण विश्व एक मूलभूत परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है और इस परिवर्तन के साथ ही बदल रहा है विश्व का भू रणनीतिक समीकरण! 

 विश्व में शांति व सद्भाव बना रहे यह मानव अस्तित्व के लिए जरूरी ही नहीं बल्कि आवश्यक भी है। क्योंकि इसके बिना मानव के उत्तम स्वास्थ्य की कल्पना नहीं की जा सकती है। दुनिया फिर से तीसरे विश्व युद्ध की ओर न जाये इसके लिए विश्व के तमाम देश आशंकित हैं।

हाल के कुछ समय से हो रही घटनाएं यही इशारा करती हैं,कि दुनियाभर में तानाशाही, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध, अधिनायकवाद, सैन्य तख्तापलट, भ्रष्टाचार ,विस्तारवादी जैसी नीतियाँ,बढ़ी हैं। जिनका प्रयोग बड़े देश अपनी अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति  छोटे देशों को निशाना बनाकर कर रहे हैं जिससे उनके हित प्रभावित  हो रहे हैं।

इसी कड़ी में इनसे लड़ने के लिए समान विचारधारा वाले देशों को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा 9-10 दिसबंर को आयोजित होने वाले समिट ऑफ डेमोक्रेसीज ( लोकतंत्र पर वर्चुअल संवाद) में भारत सहित विश्व के 110 देशों के शीर्ष नेताओं को आमंत्रित किया गया है। जिसका उद्देश्य दुनियाभर में लोकतांत्रिक अभाव,अधिकारों और स्वतंत्रता के क्षरण को रोकने में मदद करना है। इसमें दुनियाभर के लोकतंत्रों के सामने आने वाली चुनौतियों और अवसरों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। इसके साथ ही यह वर्चुअल समिट नेताओं को देश और दुनिया में लोकतंत्र ,मानव अधिकारों की रक्षा के लिए व्यक्तिगत और सामूहिक प्रतिबद्धताओं व सुधारों की पहल व घोषणा के लिए एक मंच प्रदान करेगा।

    इस समिट का मूलमंत्र अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन द्वारा इसी साल फरवरी में कही गई बात है, जिसमें उन्होंने कहा था, 'लोकतंत्र दुर्घटनाबस नहीं होता , हमें इसका बचाव करना होता है, इसके लिए लड़ना होता है, इसको  मजबूत करना होता है, और इसका नवीनीकरण(modernization) करना होता है।

बहरहाल लोकतंत्र पर संवाद के लिए आमंत्रित सदस्यों की सूची में रूस, चीन, को न्योता नही दिया गया है। ,जिन्हें वैश्विक राजनीति में अमेरिका के कट्टर प्रतिद्वंदी के तौर पर देखा जाता है। वहीं तुर्की को इस सम्मेलन में आमंत्रित नहीं किया गया है जो अमेरिकी सैन्य संगठन नाटो का एक सदस्य देश है। दक्षिण एशिया की बात करें तो बांग्लादेश, श्रीलंका ,अफगानिस्तान ,को भी इस चर्चा में आमंत्रित नहीं किया गया है। तो वहीं मध्य पूर्व एशिया से ईरान को छोड़कर इराक , इजराइल को इस चर्चा में आमंत्रित किया गया है । अमेरिका ने अरब देशों में  अपने सहयोगियों यूएई, सऊदी अरब, मिस्र ,जॉर्डन को भी इसमें शामिल नहीं किया है।

 हालंकि  चीन ,तुर्की को आमंत्रित न करने की एक बजह यह भी हो सकती है क्योंकि इन्हें रूस ने अपने S-400 मिसाइल सिस्टम देने का समझौता किया है जिसका वाशिंगटन द्वारा विरोध किया गया था। जबकि रूस की जनता पुतिन शासन के खिलाफ पहले से ही सड़कों पर है।

वहीं सबसे गौरतलब है दक्षिणपंथी ट्रंप समर्थक माने जाने वाले  ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोलसनारो को भी इसमें आमंत्रित किया गया है जो हमेशा अपने कट्टरवादी निर्णयों के कारण सुर्खियों में रहते हैं।

   हालांकि सबसे रोचक यह है आतंक की फैक्ट्री कहे जाने वाले पाकिस्तान को इस समिट में बुलाया गया है, और ताइवान को आमंत्रित कर वाशिंगटन ने बीजिंग को करारा सन्देश दिया है। अमेरिका द्वारा  ताइवान को आमंत्रित कर उसके एक स्वतंत्र देश 'रिपब्लिक ऑफ चाइना' की नीति का समर्थन किया गया है । जिसे चीन वन चाइना पालिसी के तहत अपना एक हिस्सा मानता है।

वन चाइना नीति

यह चीन के उस पक्ष का कूटनीतिक समर्थन है कि विश्व में सिर्फ एक चीन है और ताइवान उसका एक हिस्सा है। इसी कारण विश्व के अधिकांश देशों के औपचारिक संबंध ताइवान के बजाय चीन के साथ हैं।

इस सम्मेलन के केंद्र में मुख्य मुद्दे अफगानिस्तान में तालिबान शासन जो अमेरिकी सेना की वापसी के बाद अफरातफरी का शिकार हुआ है , म्यांमार का सैन्य तख्तापलट, आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन,चीनी विस्तारवादी नीतियों,पर चर्चा हो सकती है।

इस सम्मेलन के जरिये सरकार, नागरिक समाज और निजी क्षेत्र के नेताओं को लोकतांत्रिक व्यवस्था के नवीनीकरण के वास्ते एक सकारात्मक एजेंडा तैयार करने और सामूहिक कार्यवाही के माध्यम से आज लोकतंत्रों के सामने आने वाले सबसे बड़े खतरों से निपटने के लिए एक साथ लाया जायेगा।

क्या है लोकतंत्र ?

हाल ही में जारी लोकतंत्र की वैश्विक स्थिति 'रिपोर्ट' ,2021 (ग्लोबल स्टेट ऑफ डेमोक्रेसी) के अनुसार

किसी सम्रद्ध व विविधता भरे लोकतंत्र में निम्न पाँच विशेषतायें होनी चाहिए।

1.प्रतिनिधि सरकार

2.मौलिक अधिकार

3.सरकार पर नियंत्रण

4.निष्पक्ष प्रशासन और

5.समान भागीदारी के अवसर

 भारत- अमेरिकी संबंध

पिछले दो दशकों में दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र और सबसे बड़े लोकतंत्र—अमेरिका और भारत, के बीच की साझेदारी व्यापक रूप से सुदृढ़ हुई है। रणनीतिक सहयोग से लेकर दोनों देशों के लोगों के बीच गहरे होते संबंधों से दोनों देशों को प्रभावशाली लाभ प्राप्त हुए हैं। 

अमेरिका, भारत के उन चुनिंदा देशों की लिस्ट में है जिससे  उसका व्यापार अधिशेष की स्थिति में है।

      दोनों ही देश लोकतांत्रिक और समान विचारधारा वाले होने के कारण  वैश्विक विरादरी में खासा महत्व रखते हैं आज भारत के बिना दुनिया में कोई अमूलचूल परिवर्तन सम्भव नही है। दोनों ही देशों के साझा श्रम बल , बाजार, उपभोक्ता वर्ग,  तकनीक जैसे -आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, जेनेटिक इंजिनयरिंग, ब्लाक चेन ,स्पेस टेक्नोलॉजी में साथ काम कर रह हैं ,स्वास्थ्य सुविधाएं जैसे तमाम कारक इसे और महत्वपूर्ण बना देते हैं।

दोनों पक्षों की नज़र अब अफगानिस्तान संकट और चीन के उदय एवं दावे से प्रेरित हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उभर रही बड़ी चुनौतियों पर है। जिसके लिए क्वैड (अमेरिका ,जापान, ऑस्ट्रेलिया, भारत) चार देशों का औपचारिक गठबंधन किया गया जो चीन को काउंटर करने में मदद करेगा।

भू राजनीतिक उतार चढ़ाव के इस दौर में दुनिया के दो लोकतंत्रों का साथ आना आज के शक्ति सन्तुलन के लिए आवश्यक कदम होगा।

ये दोनों देश अपने व्यापक सांस्कृतिक और रणनीतिक सरेंखण की तरह ही इन ग्लोबल समस्याओं का साथ आकर समाधान कर सकते हैं। और विश्व को एक नई राह दिखा सकते हैं।

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