बजट : क्या उम्मीदों को लगेगा बूस्टर डोज?

1 फरवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अपना चौथा बजट पेश करेंगी। जिस पर दो फैक्टर्स का असर देखने को मिल सकता है। पहला है पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव और दूसरा कोरोना की तीसरी लहर। केंद्रीय बजट एक वित्तीय लेखा जोखा भर नही है। यह एक अवसर है कि केंद्र सरकार अपनी नीतिगत राह का खाका तैयार करे मोदी सरकार की जहाँ एक ओर 2025 तक पाँच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की आकांक्षा है। वहीं दूसरी ओर कोविड की तीसरी लहर और कोरोना के बढ़ते केसों के कारण सप्लाई चेन से जुड़ी चुनौतियों का भी जोखिम है।

 अर्थशास्त्रियों की माने तो सरकार का ध्यान बजट में चुनावी माहौल को देखते हुए लोकलुभावन हो सकता है जिसमें सरकार चुनावी राज्यों का सीधे जिक्र करने से बचेगी। इकोनॉमिस्ट और पूर्व चीफ स्टैटिस्टीशियन ऑफ इंडिया के अनुसार बजट में बड़ी संख्या में वादे शामिल होने की उम्मीद है। 

    सरकार को अपने वित्तीय घाटे को कम करने के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश(FDI), संपत्तियों का मौद्रीकरण और विनिवेश के जरिए फंड को जुटाने का लक्ष्य होगा। तो वहीं उधोग,अवसरंचना, स्वास्थ्य, शिक्षा,बैंकिंग, वित्तीय साक्षरता जैसे क्षेत्रों पर सरकार का ध्यान अधिक होगा।

बजट के दौरान लोगों की अधिकांश निगाहें प्रत्यक्ष करों की दरों से जुडी घोषणाओं पर टिकी होती है। भारत में उच्चतम कर की दरों वाली श्रेणी बहुत ऊंची है, वस्तुतः भारतीय मध्य वर्ग सरकार से उदारता की प्रतीक्षा कर रहा है। हमारा टैक्स जीडीपी अनुपात अभी बहुत लचर स्थिति में है जिसमें सुधार की आवश्यकता है।

विनिवेश राज्य का एक प्रमुख स्रोत है। एयर इंडिया का निजीकरण उत्साहित करने वाला है,लेकिन यह अपर्याप्त है।

केंद्र और राज्य सरकारों के पास जमीन का सबसे बड़ा भंडार है। जिस अधिशेष अचल संपत्ति को कारोबारी भाषा में गैर-मूल संपत्ति (नान कोर असेट्स) कहा जाता है। जानकारों के अनुसार उसके मौद्रीकरण से जुड़े प्रावधान बजट में देखने को मिल सकते हैं।

तीन कृषि कानून की वापसी के बाद वित्त मंत्री बजट में किसानों के लिए पीएम किसान योजना के तहत मिलने वाली रकम 6000 रुपए से बढ़ाकर 8000 रुपए और सभी फसलों के लिए एमएसपी (MSP) पर एक पैनल के गठन की घोषणा कर सकती हैं।

कोरोना काल के अनुभवों और देश के बड़े हिस्से में गुणवत्ता पूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं की कमी को देखते हुए इस बार बजट में स्वास्थ्य ढांचे को डिजिटल बनाने के लिए विशेष प्रावधान हो सकता है। स्वास्थ्य मंत्रालय का मानना है कि डिजिटल स्वास्थ्य ढांचा मौजूदा वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है, जो देश में स्वास्थ्य क्षेत्र की मौजूदा चुनौतियों से निपटने में कारगर हथियार साबित हो सकता है। डिजिटल स्वास्थ्य सेवाओं की जरूरत को इस बात से समझा जा सकता है कि देश में जनसंख्या के अनुपात में डाक्टरों की भारी कमी है। मौजूदा समय में देश में 1447 की जनसंख्या पर एक डाक्टर उपलब्ध हैं। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के अनुसार एक हजार की जनसंख्या पर एक डाक्टर होना चाहिए।

भारतीय फार्मास्यूटिकल्स उत्पादकों के संगठन (OPPI) के अध्यक्ष एस श्रीधर  के मुताबिक बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए आवंटन सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 1.8 फ़ीसदी से बढ़ाकर 2.5 फीसदी से 3 फीसदी तक किया जाना चाहिए। इसके अलावा बायोफार्मास्यूटिकल क्षेत्र में शोध एवं विकास के लिए अलग से आवंटन किया जाना चाहिए। दवाओं पर सीमा शुल्क छूट जारी रखी जा सकती है क्योंकि मौजूदा परिदृश्य में इस तरह की दवाओं को उचित मूल्य पर उपलब्ध कराना संभव नहीं होगा।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार आगामी बजट में शिक्षा पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित किया जाएगा। जिसमें राष्ट्रीय शिक्षा मिशन और अध्यापक प्रशिक्षण प्रोग्राम पर भी विशेष रूप से ध्यान दिया जाएगा साथ ही डिजिटल शिक्षा को प्रोत्साहन देने पर भी जोर होगा, जो भारत जैसे बड़े आकार के देश के लिए महत्वपूर्ण है। शिक्षाविदों का मानना है कि इस बार बजट में जीडीपी का 6 फीसदी आवंटन होना चाहिए जो 2014-19 वर्षों में 2-3 फ़ीसदी रहा है। जिससे न केवल कोविड संबंधी चुनौतियां दूर करने में बल्कि नई शिक्षा नीति 2020 को बढ़ावा देने में भी मदद मिलेगी।

पूर्व आरबीआई गवर्नर और अर्थशास्त्री रघुराम राजन की माने तो सरकार को बजट में डिमांड बढ़ाने वाले उपायों पर फोकस  और महंगाई पर नियंत्रण करने के उपायों पर ध्यान देना चाहिए। केंद्र और राज्य सरकारें इंफ्रास्ट्रक्चर को अपनी प्राथमिकता बना सकती हैं। इससे छोटे रोजगार के मौके पैदा होंगे और बाजार में मांग बढ़ेगी जो देश की विकास दर के लिए आवश्यक घटक है। साथ ही बजट में स्टील, कापर, सीमेंट, जैसी चीजों की मांग बढ़ाने के उपाय करने होंगे और टेलिमेडिसिन, टेली लेयरिंग, एडुटेक जैसे नए क्षेत्रों पर अधिक जोर देना होगा।

मोदी सरकार का फोकस क्लीन एनर्जी का इस्तेमाल बढ़ाने पर है। पिछले साल CoP26 सम्मेलन में पीएम ने कार्बन उत्सर्जन में कमी के लिए महत्वकांक्षी लक्ष्य का ऐलान किया था। देश के उत्तरपूर्वी इलाके में हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स शुरू करने की बड़ी सम्भावनाएं हैं। इसके अलावा नए ट्रांसमिशन पावर लाइन के लिए भी बड़े फंड का प्रस्ताव बजट में देखने को मिल सकता है। सरकार बजट में इलेक्ट्रिक व्हीकल्स के लिए ढाँचागत सुविधाएं प्रदान करने के लिए इंसेंटिव के उपाय कर सकती है। जिससे पेट्रोल- डीजल की खपत में कमी आएगी। इससे पेट्रोलियम आयात पर हमारी निर्भरता घटेगी। हम अपनी जरूरत का 80 फीसद से अधिक पेट्रोलियम का आयात करते हैं, जिसमें काफी विदेशी मुद्रा खर्च होती है,उसकी बचत होगी।

साथ ही बजट में ऐसे प्रावधान और रियायतें दी जाएं जो विकसित और विकासशील देशों के साथ व्यापार बढ़ाने वाले हों। विदेश व्यापार और निर्यात बढ़ने से देश में रोजगार के नए मौके भी बनेंगे और देश की अर्थव्यवस्था भी तेजी से बढ़ेगी। 

 सरकार किन सेक्टर्स पर मेहरबान होगी और कौन से उपेक्षित रह जाएंगे यह तो 1 फरवरी को ही पता चल सकेगा कि आगामी बजट किन-किन कसौटियों पर खरा उतरा है। 

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