समूचे विश्व के लिए गरीबी एक अभिशाप है गरीबी के समूल उन्मूलन के लिए विश्वभर में समेकित प्रयास किए जा रहे हैं।
गरीब एवं अमीर के बीच की खाई दिनानुदिन बढ़ती ही जा रही है यह खाई धनवान को अधिक धनी और गरीब को और गरीब बना रही है।
धन कुबेर अपने धन का उपयोग अपने आर्थिक ढांचे का नया स्वरूप (नव उपनिवेशवाद) को और अधिक समृद्ध करने के लिए तरह-तरह के प्रयोग कर रहे हैं।
ब्लूमबर्ग बिलेनियर इंडेक्स की रिपोर्ट की माने तो एशिया के सबसे अमीरों की सूची में बरसों से शामिल मुकेश अंबानी अब दूसरे सबसे अमीर आदमी बन गए हैं। जी हाँ हैरान मत होइए इन्हें पछाड़ने वाले कोई और नहीं बल्कि देश के ही टॉप बिजनेसमैन गौतम अडानी हैं।
हालिया संदर्भ में यह बात और भी प्रासांगिक हो जाती है जब देश ही नही बल्कि पूरा विश्व कोरोना जैसी भयंकर त्रासदी से जूझ रहा हो। ऐसे में संपत्ति का केंद्रीकरण समाज के कुछ लोगों, वर्गों, संगठनो तक सीमित होने से इसका गहरा और व्यापक प्रभाव पड़ता है।
यह तब और भी भयाभय हो जाता है। जब देश की अधिकांश जनता जो अपनी बेसिक नीड्स जिसमें शामिल पोषित भोजन, शिक्षा, स्वास्थ्य,चिकित्सा जैसी मूल सुविधाओं से उसकी अन्यतम दूरी हो यह स्थिति देश के विकास के खोखलेपन को ही प्रदर्शित करती है।
तमाम लोग अपनी छोटी सी जमा पूंजी पर गुजारा कर रहे हैं। कोई यह दलील दे सकता है कि अर्थव्यवस्था का बुरा दौर बीत चुका है और हाशिये के लोगों के लिए सरकार ने कई उपाय किए हैं। सवाल यह है कि इसका नतीजा क्या रहा ?
विश्व बैंक के आंकडों के आधार पर प्यू रिसर्च सेंटर ने अनुमान लगाया है कि कोरोना के बाद की मंदी के चलते देश में प्रतिदिन दो डालर या उससे कम कमाने वाले लोगों की तादाद महज पिछले एक साल में 6 करोड़ से बढ़कर 13 करोड़, 40 हजार यानी दोगुने से भी ज्यादा हो गई है। इसका साफ संकेत है कि भारत 45 साल बाद एक बार फिर ‘सामूहिक तौर पर गरीब देश’ बनने की ओर बढ़ रहा है।
आज जब देश आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है तब हमारी यह स्थिति हमें और भी सोचने को मजबूर करती है, कि क्या यही गाँधी के सपनों का भारत है? हमने पिछले 7 दशकों में क्या प्रगति की? क्या हमारे संविधान में वर्णित सामाजिक ,आर्थिक, राजनैतिक न्याय की पहुंच देश के आमजन तक हुई? ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिन पर विचार करने की आवश्यकता है।
हम देश की वर्तमान समय में हो रहे परिवर्तनों के परिप्रेक्ष्य में कुछ रिपोर्टों का अध्ययन करेंगे जिसमें हम विभिन्न फैक्टर्स को जानेंगे , उनकी क्या स्थिति है और क्या सुधार की गुंजाइश।
अगर हम 'ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स 2021' रिपोर्ट, की बात करें तो- हमें 156 देशों में 140 वीं रैंक मिली है जो हमारे लिए गौरव की बात है जिस पर हम अपनी पीठ थपथपा खुश हो सकते हैं।
वहीं संयुक्त राष्ट्र सतत विकास समाधान नेटवर्क द्वारा जारी 'वैश्विक खुशहाली रिपोर्ट' , 2021 जिसमें वहाँ के लोग कितना खुश हैं के आधार पर पर तैयार की जाती है जिसमें 149 देशों की सूची में भी हम सबसे आगे हैं जहाँ हम 139वे स्थान पर हैं। जो हमारी जनकल्याण में जारी योजनाओं की जमके कलई खोल रही है।
गैर लाभकारी संगठन ऑक्सफैम की 'The inequality virus' शीर्षक की रिपोर्ट ,के अनुसार देश के 1 फ़ीसदी लोगों का देश के 50 फ़ीसदी संसाधनों पर कब्जा है, जो हमारे संविधान की उद्देशिका में वर्णित सामाजिक, आर्थिक ,राजनैतिक न्याय, को सुनिश्चित करने वाली संकल्पना को आईना दिखाती है। इस रिपोर्ट में असमानता और तानाशाही जैसे -पितृसत्ता की संरचनात्मक व्यवस्था , लैंगिंक अंतराल नस्लभेद व्हाइट सुप्रीमेसी यानि (स्वेत नस्ल को बढ़ावा ) की तीखी आलोचना की गई है। रिपोर्ट की माने तो कोरोना महामारी के दौरान रिलायंस इंडस्ट्रीज के मालिक मुकेश अंबानी ने 1 घंटे में जितनी संपत्ति कमाई उस संपत्ति को कमाने में एक अकुशल कारीगर को लगभग 10000 साल का समय लगेगा। वहीं उन्होंने जितना एक सेकंड में कमाया उतना कमाने में उसे 3 साल लग जाएंगे।
बीते दिनों नीति आयोग द्वारा 'बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI)' जारी किया गया। इसके जरिये संयुक्त राष्ट्र द्वारा लक्षित सतत विकास लक्ष्य-2030 को हासिल करने की दिशा में भारत के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की प्रगति की निगरानी की जाती है।
गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2015 में अनुमोदित सतत विकास लक्ष्य एजेंडे के तहत 17 मुख्य तथा 169 सहायक लक्ष्य निर्धारित किए गए थे। इसका मकसद अधिक संपन्न, समतावादी तथा संरक्षित भविष्य की रचना करने के लिए 2030 तक भुखमरी, गरीबी तथा लैंगिक विषमता को शून्य स्तर तक लाना तथा बेहतर स्वास्थ्य, स्वच्छ पेयजल, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक सभी नागरिकों की समान पहुंच को सुनिश्चित करना है। भारत सहित दुनिया के 193 देशों द्वारा सतत विकास की अवधारणा को अपने देश में लागू करने का प्रयास किया जा रहा है।
MPI गरीबी को उसके कई आयामों में मापने का प्रयास करता है और वास्तव में प्रति व्यक्ति खपत व्यय के आधार पर मौज़ूदा गरीबी के आँकड़े प्रदान करता है।
नीति आयोग द्वारा जारी राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक 'ऑक्सफोर्ड पॉवर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट' इनिशिएटिव (OPHI) और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा विकसित विश्व स्तर पर स्वीकृत कार्यप्रणाली का उपयोग करता है।
इससे पहले जारी वैश्विक MPI 2021 के अनुसार, 109 देशों में भारत की रैंक 66वीं है। इस रिपोर्ट में भारत के 5 बहुआयामी गरीब लोगों में से पांच निचली जनजातियों या जातियों से हैं ।
•अनुसूचित जनजाति 9.4%
•अनुसूचित जाति 33.3%
•अन्य पिछड़ा वर्ग समूह 27.2%
नीति आयोग द्वारा जारी सूचकांक को 3 समान रूप से भारित आयामों स्वास्थ्य ,शिक्षा और जीवन स्तर के आधार पर बांटा जाता है। जिसे 12 संकेतकों के माध्यम से व्यक्त किया जाता है। जैसे-पोषण, स्कूल में नामांकन, स्कूली शिक्षा, पेयजल, स्वच्छता, आवास, बैंक खाते आदि।
सूचकांक के निष्कर्ष: यह देश में गरीबी की एक समग्र तस्वीर प्रस्तुत करता है, साथ ही उन क्षेत्रों - राज्य या ज़िलों, एवं विशिष्ट क्षेत्रों का और अधिक गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है। जहाँ आर्थिक संसाधनो तक लोगों की पहुँच सीमित है।
गरीबी का स्तर:
बिहार राज्य की आबादी में गरीबी का अनुपात सबसे अधिक है, इसके बाद झारखंड और उत्तर प्रदेश का स्थान है जहाँ बहुआयामी गरीबी का स्तर पाया जाता है।
केरल राज्य की जनसंख्या में सबसे कम गरीबी स्तर दर्ज किया गया, इसके बाद पुद्दुचेरी, लक्षद्वीप, गोवा और सिक्किम का स्थान है।
कुपोषित लोग:
बिहार में कुपोषित लोगों की संख्या सबसे अधिक है, इसके बाद झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ का स्थान आता है।
अब प्रश्न यह उठता है कि सरकार द्वारा संचालित तमाम सरकारी योजनायें क्या युक्तिसंगत तरीके से अपना कार्य कर रही हैं या कितनी कर पायी?
वर्तमान समय में नई योजनाओं को बनाने से पूर्व पहले की चल रही तमाम योजनाओं की मॉनिटरिंग अति आवश्यक है।
विशेषज्ञों की मानें तो देश में योजनाओं का ठीक तरह से क्रियान्वयन ना हो पाने के कारण आज अमीर और गरीब की खाई और अधिक बढ़ती जा रही है । जिसे कम करने में राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी , अवसरवादिता,लालफीताशाही ,भ्रष्टाचार जैसे कारक प्रमुख रूप से अपनी भूमिका निभा रहे हैं। जिनका तार्किक नियोजन द्वारा समाधान किया जा सकता है।
इस असमानता को दूर करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा सार्वभौमिक कवरेज का मजबूती से समर्थन किया जाना चाहिए। और बुनियादी ढांचे को सरकार द्वारा और अधिक युक्तिसंगत बनाने के प्रयास किये जाने चाहिए। समाज के विभिन्न स्तरों के बीच धन के वितरण में बन रहे विशाल अंतर को पाटने के लिए उपाय किए जाने चाहिए ,जिससे आर्थिक संसाधनों का विकेन्द्रीकरण हो सके।
विशेषज्ञों के अनुसार कुछ भारतीय राज्य उड़ीसा और उत्तर पूर्वी राज्यों की तुलना में अधिक गरीबी से ग्रस्त हैं. सरकार को करों पर विशेष रियायतें देकर इन राज्यों में निवेश को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
साथ ही खाद्य पदार्थों ,स्वच्छ पेयजल ,जैसे जीवन की संतोषजनक गुणवत्ता प्राप्त करने के लिए लोगों को प्राथमिक सुविधाएं अधिक आसानी से उपलब्ध होनी चाहिए। सार्वजनिक वितरण प्रणाली और सब्सिडी की दरों में सुधार किया जाना चाहिए।
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