
तकनीकी प्रगति का मूल उद्देश्य हमेशा से मानव जीवन को सरल,कुशल और समृद्ध बनाना रहा है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) ने इसमें अभूतपूर्वव बदलाव किया है। यह जीवन के हर क्षेत्र जैसे-चिकित्सा, शिक्षा, उद्योग, और सामाजिक समावेशन में क्रांतिकारी बदलाव ला रहा है। स्टैनफोर्ड विश्विद्यालय की 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, एआई-आधारित शिक्षण उपकरणों ने औसतन 25% छात्रों की सीखने की गति में सुधार किया है। मैन्युफैक्चरिंग में एआई-संचालित रोबोट्स ने उत्पादन क्षमता को 25 फासदी तक बढ़ाया है। चिकित्सा क्षेत्र में एआई एल्गोरिदम कैंसर का 85 फीसदी सटीकता से पता लगाते हैं। वहीं,टेलीमेडिसिन ने ग्रामीण क्षेत्रों में लाखों मरीजों तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुँचाई हैं। सामाजिक समावेशन को बढ़ावा देते हुए, एआई ने 20 प्रतिशत से अधिक दिव्यांगों को डिजिटल सेवाओं तक पहुंच प्रदान की है। नेटफ्लिक्स जैसी कंपनियां अपने एआई-आधारित रिकमेंडेशन सिस्टम से प्रतिवर्ष 2-3 बिलियन डॉलर की बचत या कमाई कर रही हैं। लेकिन क्या आपने सोचा है जब यही तकनीक मानव जीवन को संकट में डाल दे तब क्या होगा? साफ है कि ऐसी स्थिति में इसके विवेकपूर्ण उपयोग और सख्त विनियमन की आवश्यकता निर्विवाद रूप से अवश्यांभी हो जाती है।
एआई का अंधा दुरुपयोग
हाल ही में अमेरिका के कैलिफोर्निया में हुई एक हृदयविदारक घटना ने एआई के अनियंत्रित उपयोग की खतरनाक संभावनाओं को उजागर किया है। एक 16 वर्षीय किशोर ने ओपन एआई के चैटजीपीटी के उन्नत मॉडल का उपयोग आत्महत्या के लिए किया। इस चैटबॉट ने न केवल आत्महत्या के तरीके सुझाए बल्कि सुसाइड नोट लिखने में भी सहायता प्रदान की। यह घटना केवल एक त्रासदी नहीं बल्कि एक गंभीर चेतावनी है कि तकनीक, जो मानव जीवन को बेहतर बनाने के लिए बनाई गई थी, गलत हाथों में पड़कर विनाशकारी हो सकती है। सवाल उठता है कि क्या हमारी तकनीकी प्रगति ने हमें ऐसी स्थिति में ला खड़ा किया है, जहां हम इसके दुरुपयोग को रोकने में असमर्थ हैं? क्या हम अभी तक यह तय नहीं कर पाए हैं कि तकनीक का उपयोग कितना और कैसे करना है? और सबसे महत्वपूर्ण सवाल इसकी जिम्मेदारी आखिर किसकी है—तकनीकी कंपनियों की, सरकारों की, या समाज में रहने वाले लोगों की।
एआई के दुरुपयोग के मामले दिन-ब-दिन बढ़ रहे हैं। साइबर ठगी, डीप फेक वीडियो और गलत सूचनाओं का प्रसार सामाजिक माहौल को दूषित कर रहा है। दुनिया भर में लाखों मामले दर्ज हो रहे हैं, जहां एआई का उपयोग कर बैंक खातों से पैसे निकाले जा रहे हैं। बड़े अधिकारियों को ठगा जा रहा है। जानी-पहचानी हस्तियों के चेहरों का दुरुपयोग कर सामाजिक अशांति फैलाई जा रही है। 2024-2025 में डीपफेक मामलों में 1530 प्रतिशत की वृद्धि हुई है,जिसने सामाजिक ध्रुवीकरण और मिसइनफॉर्मेशन को बढ़ावा दिया है। पूर्वाग्रहों से ग्रस्त आई एल्गोरिदम सामाजिक असमानताओं को और बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं। गौर करने वाली बात है कि यह तकनीक अभी पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाई है फिर भी इसका दुरुपयोग बड़े पैमाने पर होने लगा है। एआई की शुरुआत से ही विशेषज्ञों ने
इसके खतरों को लेकर ध्यान दिलाया है। आलोचकों का मानना है कि यह रचनात्मकता, निजता, और वित्तीय सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है। एआई में दुनियाभर की सूचनाओं को खंगालकर जरूरत के हिसाब से जानकारी प्रदान करते की क्षमता है, इसकी यह खूबी इसे शक्तिशाली और खतरनाक दोनों बनाती है। कई देशों ने इसके डेटा संग्रह और गोपनीयता में सेंधमारी को लेकर भी चिंता जताई है। यह तकनीक न केवल व्यक्तिगत सुरक्षा को चुनौती दे रही है, बल्कि सामाजिक और नैतिक मूल्यों पर भी गंभीर सवाल उठा रही है।
वैश्विक चिंता और नियमन के प्रयास
विश्व आर्थिक मंच 2025 में कई देशों ने एआई के अनियंत्रित प्रसार पर अंकुश लगाने की मांग की। स्पेन के प्रधानमंत्री ने यूरोपीय संघ से गलत सूचना, डीप फेक वीडियो और साइबर उत्पीड़न पर सख्त कार्रवाई की अपील की। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने एआई को मानवता के लिए वैश्विक चुनौती बताते हुए सरकारी और निजी स्तर पर तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता जताई। स्टैनफोर्ड एआई इंडेक्स रिपोर्ट 2025 के अनुसार, 75 देशों में एआई से संबंधित विधायी प्रावधानों में 21 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यह 2016 की तुलना में नौ गुना अधिक है।
यूरोपीय संघ का एआई एक्ट (2024) विश्व का पहला व्यापक एआई कानून है, जो जोखिम-आधारित दृष्टिकोण अपनाता है। यह कानून एआई सिस्टम्स को उनके जोखिम के स्तर के आधार पर वर्गीकृत करता है और उच्च-जोखिम वाले सिस्टम्स पर सख्त नियम लागू करता है। जापान ने व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए एआई के उपयोग पर प्रतिबंध की बात कही है। वहीं, अमेरिका में जहां कोई संघीय कानून नहीं है लेकिन कई राज्यों ने अपने स्तर पर एआई-केंद्रित कानून बनाए हैं। नवंबर 2023 में लंदन के ब्लेटचली पार्क में आयोजित एआई सेफ्टी समिट ने वैश्विक स्तर पर एआई विनियमन और सुरक्षा पर पहली बड़ी पहल की गई। इसका फोकस फ्रंटियर एआई मॉडल्स (उन्नत और जोखिम भरे सिस्टम्स) से उत्पन्न खतरों पर था। फरवरी 2025 में पेरिस एआई एक्शन समिट में 58 देशों ने समावेशी और टिकाऊ एआई विकास के लिए घोषणा पर हस्ताक्षर किए। ये प्रयास दर्शाते हैं कि वैश्विक समुदाय एआई के जोखिमों को लेकर गंभीर है।
एआई अवसर और खतरा
एआई एक जादुई कलम की तरह है। यह जटिल समस्याओं को हल करने और नए दृष्टिकोण प्रदान करने में सक्षम है। यह फ्लाइट बुकिंग से लेकर लोन स्वीकृति, कल्याणकारी योजनाओं की पात्रता और नौकरी में नियुक्तियों तक के निर्णय ले रहा है। रेकमेंडर सिस्टम्स, सोशल मीडिया, ऑनलाइन शॉपिंग और यूट्यूब पर आपके अनुभव और जरूरत के हिसाब वस्तुओं और सेवाओं की सलाह दे रहे हैं। 48 प्रतिशत व्यवसाय बड़े डेटा का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिए एआई का इस्तेमाल करते हैं। वैश्विक एआई बाजार का मूल्य 391 बिलियन डॉलर है और अगले पांच वर्षों में इसके पांच गुना बढ़ने की उम्मीद है। 83 फीसदी कंपनियां इसे अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता मानती हैं। लेकिन यही तकनीक स्वतंत्र सोच के लिए खतरा भी बन रही है। डीप फेक और गलत सूचनाएँ सामाजिक ताने-बाने को कमजोर कर रही हैं। एक समय था जब सर्च इंजन आपको वेबसाइटों की सूची देता था। अब एआई सीधे जवाब देता है। यह सुविधा जितनी उपयोगी है,उतनी ही जटिल चुनौतियां भी लेकर आई है। इसका अनियंत्रित उपयोग मानवता को गहरे संकट में डाल सकता है।
भारत में एआई
भारत में एआई का बाजार 2025 में 8 बिलियन डॉलर तक पहुंच चुका है और 2027 तक इसके 17-22 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। 890 से अधिक जेनरेटिव एआई स्टार्टअप्स और सरकारी प्रयास, जैसे ओपन-सोर्स एआई को बढ़ावा, इसे विकसित भारत का आधार बना रहे हैं। मई 2025 में वैश्विक उद्यम पूंजी फर्म बॉन्ड की रिपोर्ट के अनुसार, चैटजीपीटी मोबाइल ऐप के मासिक सक्रिय उपयोगकर्ताओं में भारत का हिस्सा सबसे बड़ा है। लेकिन निवेश के मामले में भारत 1.2 बिलियन डॉलर के साथ अमेरिका (109 बिलियन) और चीन (भारत से सात गुना अधिक) से काफी पीछे है।
भारत का लक्ष्य एआई की दुनिया का अगुवा बनने का है लेकिन इसके लिए स्वतंत्र बड़े भाषा मॉडल (एलएलएम) और मजबूत डेटा प्राइवेसी कानूनों की आवश्यकता है। विशेषज्ञ कहते हैं कि सर्वम एआई को भारत का पहला एलएलएम बनाने के लिए चुना गया है, लेकिन वैकल्पिक मॉडल्स को भी प्रोत्साहन देना होगा। डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल, 2023 के बावजूद, कानून लागू करने में देरी, सरकारी नियंत्रण, वैश्विक नियमों से तालमेल में सुस्ती और जागरूकता की कमी जैसी चुनौतियां बनी हुई हैं। उनके मुताबिक, भारत को एक मजबूत एआई पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना होगा, जो नवाचार को बढ़ावा दे और प्रभावी विनियमन को सक्षम बनाए।
भारत में एआई के विकास को गति देने के लिए सरकार ने कई मिशन शुरू किए हैं। जैसे- राष्ट्रीय एआई रणनीति और डिजिटल इंडिया पहल। लेकिन इकोनॉमिस्ट के हालिया एक लेख ने सवाल उठाया है कि क्या भारत एआई क्षेत्र का विजेता बन पाएगा? लेख कुल जमा है कि भारत को निवेश, अनुसंधान और शिक्षा में व्यापक प्रयास करने होंगे। डेटा प्राइवेसी और साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में सुधार के बिना भारत वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पिछड़ सकता है।
नैतिकता और नियमन ही एकमात्र रास्ता
एआई के पास मानवीय संवेदनाएं नहीं हैं। इसे सकारात्मक और उत्पादक बनाने के लिए नैतिकता और स्पष्ट प्रोटोकॉल्स का समावेश अनिवार्य है। एआई के पितामह कहे जाने वाले जैफ्री हिंटन ने चेतावनी दी है कि यदि एआई ने अपनी स्वतंत्र भाषा विकसित कर ली, तो यह मानव नियंत्रण से बाहर हो सकता है। हम यह भी नहीं जान पाएंगे कि यह क्या सोच रहा है या क्या करने वाला है। उनकी यह चेतावनी गंभीर है क्योंकि एआई अभी अंग्रेजी में सोचता है लेकिन भविष्य में इसके स्वतंत्र विकास की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
भारतीय प्रधानमंत्री ने एआई के बढ़ते खतरे पर ठीक ही कहा है कि एआई में दुनिया को बदलने की ताकत है लेकिन इसके लिए एक वैश्विक ढांचा जरूरी है। कुछ तकनीकी कंपनियों का एकाधिकार विकासशील देशों के लिए विशेष रूप से खतरा बन सकता है। यदि एआई कंपनियों ने भी ऐसा एकाधिकार स्थापित कर लिया तो समस्या और विकराल हो जाएगी। विकासशील और निर्धन देशलपहले से ही चुनिंदा तकनीकी कंपनियों के वर्चस्व से जूझ रहे हैं। इस एकाधिकार के कारण वे और अधिक प्रभावित होंगे।
संतुलन और जिम्मेदारी की जरूरत
एआई ने मानव जीवन को अभूतपूर्व अवसर प्रदान किए हैं लेकिन इसके दुरुपयोग के खतरे किसी से छिपे नहीं हैं। सरकारों, तकनीकी कंपनियों और समाज को मिलकर एक ऐसा ढांचा तैयार करना होगा, जो एआई के लाभों को अधिकतम करे और इसके जोखिमों पर प्रभावी अंकुश लगाए। यह केवल तकनीकी कंपनियों की जिम्मेदारी नहीं है। सरकारों को सख्त कानूनी शिकंजा और वैश्विक सहयोग सुनिश्चित करना होगा। समाज को भी जागरूक होकर एआई के नैतिक उपयोग को बढ़ावा देना होगा। तकनीक तभी सच्चा अवसर बन सकेगी,जब इसका उपयोग विवेकपूर्ण, नैतिक और संतुलित ढंग से हो। भारत जैसे देशों के लिए, जो एआई में नेतृत्व की मंशा रखते हैं उनके लिए महत्वपूर्ण है कि वे निवेश, अनुसंधान, और नियमन में तेजी लाएं। यह न केवल समय की एक आवश्यकता है बल्कि मानवता के भविष्य के लिए एक अनिवार्य कदम है। एआई का सही उपयोग हमें एक समृद्ध और समावेशी विश्व की ओर ले जा सकता है लेकिन इसके लिए हमें अभी से सजग और चौकन्ना होना होगा।
Write a comment ...